भारत में सड़कों पर चलते-फिरते आवारा कुत्ते देखना कोई नई बात नहीं है। कभी ये मासूम दिखते हैं, तो कभी इनके हमलों की खबरें अख़बार और सोशल मीडिया में सुर्खियां बन जाती हैं। हाल ही में एक महिला के ऊपर दिनदहाड़े कुत्तों के हमले का वीडियो वायरल हुआ, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी। और इसी पृष्ठभूमि में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां से एक बड़ा और दूरगामी असर वाला फैसला आया है।
कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि आवारा कुत्तों को मारना नहीं है, बल्कि उन्हें पकड़कर डॉग शेल्टर में रखा जाए और उनकी नसबंदी की जाए। कोर्ट का मानना है कि इंसान और जानवर दोनों का हक़ है कि वे सुरक्षित और सम्मान से जी सकें।
• कुत्तों की सुरक्षा – इन्हें मारना संवैधानिक और नैतिक दृष्टि से गलत
• लोगों की सुरक्षा – नसबंदी और वैक्सीनेशन से हमले और बढ़ती संख्या पर काबू पाया जा सकता है
क्यों बढ़ रही है स्ट्रे डॉग्स की समस्या?

भारत में अनुमानित 1.5 करोड़ से अधिक आवारा कुत्ते हैं, और इनकी संख्या हर साल तेज़ी से बढ़ रही है।
इसके पीछे मुख्य कारण हैं:
- गंदगी और कचरा – खुले में पड़ा खाना और कचरा कुत्तों के लिए फ्री फूड जैसा है
- नसबंदी प्रोग्राम की धीमी रफ्तार – कई शहरों में यह अभियान अधूरा है
- मानव संवेदनशीलता – लोग दया दिखाकर खाना तो देते हैं, पर स्वास्थ्य और नियंत्रण की तरफ ध्यान नहीं देते
- लॉ एनफोर्समेंट की कमी – म्यूनिसिपल बॉडीज के पास पर्याप्त बजट और टीम नहीं
फैसले पर लोगों की राय – दो धड़े, दो सोचें
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद सोशल मीडिया पर राय दो हिस्सों में बंट गई:
• समर्थक पक्ष –
“जानवर भी भगवान की रचना हैं, उन्हें मारना कतई ठीक नहीं। कोर्ट का फैसला इंसानियत के पक्ष में है।”
• विरोधी पक्ष –
“जिनके बच्चे सड़क पर खेलते हैं, वो रोज़ डर में जीते हैं। हर साल कुत्तों के हमले में सैकड़ों लोग घायल होते हैं, कुछ की मौत भी हो जाती है।”
जमीनी हकीकत – फैसले को लागू करना आसान नहीं
कोर्ट का आदेश नैतिक रूप से सही दिखता है, लेकिन इसकी ग्राउंड इंप्लिमेंटेशन आसान नहीं है।

• नसबंदी के लिए लाखों कुत्तों को पकड़ना, ऑपरेशन करना और छोड़ना – भारी खर्च
• डॉग शेल्टर्स की कमी – कई शहरों में तो एक भी सही शेल्टर नहीं
• वेटरनरी डॉक्टर और स्टाफ की कमी
आगे का रास्ता – क्या किया जा सकता है?

- तेज़ी से नसबंदी और वैक्सीनेशन
- लोकल कम्युनिटी प्रोग्राम – मोहल्ला स्तर पर वॉलंटियर्स की मदद
- कचरा प्रबंधन सुधार – खुले में खाना-कचरा न पड़े
- अवेयरनेस कैंपेन – लोगों को समझाना कि खाना देना ठीक है, लेकिन स्वास्थ्य चेकअप और वैक्सीनेशन भी ज़रूरी है
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानवीय दृष्टि से सराहनीय है, लेकिन इसे प्रैक्टिकल और टिकाऊ समाधान में बदलने के लिए सरकार, NGOs, और नागरिक – सभी को मिलकर काम करना होगा। सिर्फ भावनाओं से नहीं, बल्कि योजना, बजट और सही क्रियान्वयन से ही यह समस्या खत्म हो सकती है।
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