11 अगस्त को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर ज़िले में एक 200 साल पुराने मकबरे को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। अबू नगर इलाके में बने “मंगी मकबरा” (जिसे सरकारी रिकॉर्ड में मकबरा के रूप में दर्ज किया गया है) को लेकर कुछ हिंदू संगठनों का दावा है कि यह असल में एक प्राचीन मंदिर था, जिसे मुगल काल में तोड़कर मकबरा बनाया गया।
घटना कैसे शुरू हुई?

मामला तब गरमाया जब मठ मंदिर संरक्षण समिति और कुछ स्थानीय बीजेपी नेताओं ने प्रशासन से मांग की कि उन्हें इस मकबरे में पूजा करने दी जाए। उनका कहना था कि यहाँ पहले शिव मंदिर था और आज भी भवन के भीतर त्रिशूल, कमल के चिन्ह और शिवलिंग के ऊपर कलश टांगने वाली जंजीर मौजूद है।
प्रशासन को इस कार्यक्रम की जानकारी थी, इसलिए मकबरे के पास बैरिकेड लगाकर सुरक्षा कड़ी कर दी गई। बावजूद इसके, 150-160 लोगों की भीड़ बैरिकेड तोड़कर परिसर में घुस गई, भगवा झंडा फहराया, नारेबाजी की और एक मज़ार को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की।
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया
जैसे ही घटना की खबर फैली, इलाके के मुस्लिम लोग भी मौके पर पहुँच गए। कुछ देर के लिए माहौल तनावपूर्ण हो गया और पत्थरबाज़ी की घटनाएं भी हुईं। पुलिस ने तुरंत अतिरिक्त फोर्स तैनात कर स्थिति को काबू में किया।
राष्ट्रीय उलमा काउंसिल का कहना है कि सरकारी दस्तावेज़ साफ़ बताते हैं कि यह जगह मकबरा है, और इसे मंदिर बताना ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करना है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने उपद्रवियों को रोकने में लापरवाही की और इस तरह की हरकतें धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं।

पुलिस कार्रवाई
पुलिस ने 10 लोगों को नामज़द और लगभग 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। धाराओं में अनलॉफ़ुल असेंबली, ट्रेसपास, राइटिंग और बरीयल साइट को नुकसान पहुंचाने से जुड़े प्रावधान शामिल हैं।
वीडियो फुटेज के आधार पर बाकी लोगों की पहचान की जा रही है और जल्द गिरफ्तारी संभव है।
राजनीतिक रंग
स्थानीय बीजेपी नेताओं का कहना है कि प्रशासन हिंदुओं की मांगों को नजरअंदाज कर रहा है। बीजेपी जिला अध्यक्ष मुखलाल पाल ने आरोप लगाया कि प्रशासन “एकतरफा रवैया” अपना रहा है और इस जगह का वास्तविक स्वरूप सामने आना चाहिए।
वहीं, कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि अगर यही काम मुसलमानों ने किया होता तो पुलिस गोली चला देती — उनके इस बयान पर विवाद खड़ा हो गया।
कानूनी और ऐतिहासिक संदर्भ
• प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 के अनुसार 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में था, उसे यथावत रखना अनिवार्य है।
• बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद इसका अपवाद था, लेकिन उसके बाद कई मस्जिद/मकबरों पर मंदिर होने के दावे सामने आ चुके हैं।
• विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में सोशल मीडिया के जरिए माहौल जल्दी बिगड़ता है, और प्रशासन को सतर्क रहना चाहिए।
आगे क्या?
अब मामला पुलिस जांच में है। अगर कोर्ट में पिटीशन दाखिल होती है, तो सर्वे या रिकॉर्ड की पुनः जांच भी संभव है। लेकिन प्रशासन की कोशिश यही होगी कि तनाव न बढ़े और “दूसरी बाबरी” जैसी स्थिति न बने।
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